tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post5082362422676358677..comments2024-03-29T15:18:43.757+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : geet: kab honge azad -sanjivDivya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-816514175181353422014-08-15T16:58:44.333+05:302014-08-15T16:58:44.333+05:30फूल, फल, मिठाई, धन, दूध, अनाज़, मुर्दा आदि कितना व... फूल, फल, मिठाई, धन, दूध, अनाज़, मुर्दा आदि कितना विश्वासों के तहत पानी में बहा देता है | जिसे पवित्र मानते हैं उन्हें गंदा कर देते हैं | हमारे पूर्वजों ने ऐसा बताया है जिसे हम पढ़- लिख कर भी नहीं बदल पा रहे हैं | यही विश्वास भूत-प्रेत को जन्म देते हैं जो गरीबों के घरों में ही रहते हैं | विचारे अमीरों के घर नहीं जाते | <br />- अन्धविश्वास, कुरीतियाँ, विश्व के हर देश, हर धर्म में है. भूत-प्रेत पर विश्वास करने वाले वहाँ भी हैं और यहाँ भी विश्वास नहीं करते। <br /> - येल यूनिवर्सिटी - कनेक्टिकट के एक वैज्ञानिक ने सबको चेलेंज कर दिया था कि 'भगवान कहीं नहीं है' क्योंकि वह हियुमन सेल पर काम कर रहे थे | ये सेल से ही हम जीवित हैं न कि उस ईश्वर के द्वारा | <br />- यह व्यक्तिगत विश्वास है. हमारा शरीर सेल्ल से जीवित है किन्तु उस सेल की रचना किसने की? सेल के लिए उपयुक्त वातावरण और कारक किसने बनाये खुद सेल तो नहीं सकता यह. <br />- सोमनाथ मंदिर में मुझसे ३१०० रुपये में शिव लिंग पर पूजा के लिए पैसा मांगा गया मैंवहां भौंचक्का रह गया | दूध की जगह चूना- खड़िया के पानी से ठगा जा रहा है | <br />- सोमनाथ में मैं भी गया. समय पर पंक्ति में लगा, दर्शन पाये, नैवेद्य अर्पित किया, किसी ने एक पैसा नहीं माँगा। अपनी श्रद्धानुसार धन संग्रह मंजूषा में भेंट दी. <br />- पेरिस के एक गुरुद्वारे में मुझसे माथा टेकने के लिए कहा गया और सिर बांधने के लिए | मैंने कह दिया मैं स्कूल गया हूँ, स्कूल में माथा टेकना नहीं सिखाया जाता | मेहनत करना सिखाया जाता है | यदि माथा टेकने से सब कुछ मिल जाता तो स्कूल बंद हो जाते | <br />- आप अपने विचार के अनुसार चलें। अन्य को उनके विचारों/नियमों से चलने दें. किसी संस्था के नियम हर आगंतुक के चाहे अनुसार बदले सकते। <br /> -यदि अंग्रेज़ भारत में रहे होते तो देश में आज़ सड़कों पर, गंदी नालियों पर मलमूत्र न बह रहे होते | कम से कम लोगों को पीने के लिए पानी अवश्य मिलता | खेतों के लिए सिचाई के लिए पानी का प्रबंध करते, हर नुक्कड़ पर हनुमान की मूर्ति न लगती | सड़कें एक साल में खराब न होतीं | <br />- अंग्रेज होते तो अब तक इस देश को लूटकर कंगाल कर दिया होता। पर मंदिर न होते तो हर शहर में कई-कई एकड़ में कई चर्च बने होते। वाय एम सी ए और वाय डब्ल्यू सी ए जैसी संस्थाओं देश में पंजा फैला लिया होता। क्लब कल्चर ने जीना मुश्किल कर दिया होता। विदेशी सत्ता का बनाया स्वर्ग भी हमें स्वीकार्य नहीं, अपने देश, अपनी सरकार, अपनी प्रणाली और अपने लोगों में हजार कमियाँ होने पर भी, त्रुटियों को इंगित कर, दूर करने प्रयास करने, कभी सफल कभी असफल होने, बदलाव कश्मकश के बाद भी हम अपना देश कभी नहीं छोड़ेंगे। <br />- आपने रचना को गलत सन्दर्भों में व्याख्यायित किया है. रचना में इंगित विसंगतियाँ भारत के साथ वैश्विक परिदृश्य में भी विचारणीय हैं. 'स्वर्ग तभी तो हो पायेगा धरती पर आबाद. ' यहाँ एक देश नहीं पूरी धरती की चिंता है. <br /> <br /> सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-<br /> स्वर्ग तभी तो <br /> हो पायेगा<br /> धरती पर आबाद.<br /> कब होंगे आजाद? <br /> कहो हम<br /> कब होंगे आजाद?.... <br />sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-53460620849559143072014-08-15T16:58:15.077+05:302014-08-15T16:58:15.077+05:30-विश्व अंग्रेजी में ही बात करेगा |
- यह कभी नह...-विश्व अंग्रेजी में ही बात करेगा | <br />- यह कभी नहीं होगा। अंगरेजी भाषा की कमियाँ -खामियाँ इतनी हैं कि वह विश्व भाषा की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकेगी। रूस, जापान, चीन जैसे देशों की तकनीकी प्रगति अंगरेजी के बिना ही हुई. व्यापारिक जरूरतों के लिए वे अब अंगरेजी का ज्ञान रख रहे हैं, पर उस पर निर्भर नहीं हैं. <br />- भाषा से कोई गुलाम नहीं होगा | <br />- भाषा ही मानसिक गुलाम बनाती है. अंग्रेजों ने भारत में अंगरेजी के माध्यम से जो मानसिक गुलामी थोपी है वह अब भी मिटी नहीं है. <br />लोग तो आपकी भाषा भी सीखने के लिए तैयार हैं <br />- किसी सदाशयता के कारण नहीं विश्व के सबसे बड़े बाजार के क्रेता तक पहुँच बनाने के स्वार्थ के कारण। <br />किन्तु उस देश की मर्यादा इस लायक तो हो <br />- इस देश की मर्यादा तमाम कमियों के बावजूद अन्य किसी भी देश की मर्यादा से बहुत श्रेष्ठ है. <br />अमेरिका में जितनी भाषाएं हैं शायद ही किसी देश में नहीं हैं |<br />- अमरीका में अपनी भाषा ही नहीं है. प्रवासियों की भाषाएँ उपयोग की जाती हैं. उसके बाद भी जितनी भाषाएँ अमेरिका में बोली जाती हैं उनसे भाषाएँ अधिक भारत के कई प्रांतों में बोली जाती हैं. <br />-अमेरिका के लोग भी हिन्दी बोल रहे हैं और सीख रहे हैं तो क्या अमेरिकन भारत के गुलाम हो जायेंगे | <br />- स्वहित में स्वेच्छा से सीखना और विदेशियों द्वारा खुद के स्वार्थ साधन हेतु बलात लादने में आकाश-पाताल का अंतर है. <br />-भारत में अंग्रेजी थी और रहेगी, अंग्रेजी के कारण ही भारत आज़ विश्व के साथ उठ- बैठ रहा है और व्योपार बढ़ा रहा है <br />- व्यापार केवल भाषा के कारण नहीं घटता-बढ़ता, माल की गुणवत्ता, कीमत, समय पर उपलब्धता और उपयोगिया पर निर्भर करता है. <br />अंग्रेजी के कारण ही हम भारत से अमेरिका आये | <br />- यह आपका सौभाग्य सकता है, आप इसलिए अंगरेजी का ढोल पीटें। <br />इस अंग्रेजी के कारण ही मोदी गुजरात में सरदार पटेल की इस मीनार को बना सकेंगे <br />- जी नहीं। भारत का निर्माण भारतीयों के संकल्प, आवश्यकता, संसाधनों से ही होगा। <br />क्योकि अमेरिका में अंग्रेजी से ही हम भारत को इस काबिल बना सके हैं कितना एनआरआई का पैसा रोज़ भारत आता है आपको अंदाज़ा भी न होगा | वह अलग बात है कि भारत के मंदिरों का ब्लैक किया धन डालरों में अमेरिका आता है | <br />- भारत प्रवासियों के धन पर निर्भर नहीं है. वह पासंग की तरह है. देश के वार्षिक बजट और प्रवासियों से आये धन की तुलना करें। मैं प्रवासियों की अवमानना नहीं करना चाहता पर यह सिर्फ मुगालता है कि वे ही भारत को चला रहे हैं. <br />-स्विश बैंक में कोई पैसा नहीं है <br />- स्विस बैंक सूचियाँ जारी कर चुके हैं जो अंतर्जाल पर हैं. <br /> ये सब राजनीति है भारत के लोगों को उल्लू बनाने के लिए, उनका वोट लेने के लिए कितना ड्रामा सरकार को करना पड़ता है | किन्तु लोग वही, खेत वही, व्यवस्था- संस्कृति वही, सोच वही आदि | <br />- चुनाव में राजनीति और ड्रामा अमेरिका में भी होता है, घोषणाएँ, आश्वासन और चुनाव के बाद कुछ अन्य नीति... <br />हर आदमी आज़ादी के लिए, इस आज़ादी में रो रहा है | हर आदमी अपने हिसाब कि आज़ादी चाहता है वह नामुमकिन है | समाज़ अभी भी अंधा है, अंधविश्वासी है; इस वर्ण- व्यवस्था में <br />- आजादी के लिए अरण्यरोदन नहीं हो रहा है, आजादी की बेहतरी के लिये चिंतन हो रहा है. इतनी जनसँख्या वहाँ हो व्यवस्था नष्ट हो जाए. भारत इतनी बड़ी जनसँख्या को ही नहीं पड़ोसी देशों से आये घुसपैठी करोड़ों लोगों को भी पालता है. sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-46285130104382404772014-08-15T16:58:09.724+05:302014-08-15T16:58:09.724+05:30-विश्व अंग्रेजी में ही बात करेगा |
- यह कभी नह...-विश्व अंग्रेजी में ही बात करेगा | <br />- यह कभी नहीं होगा। अंगरेजी भाषा की कमियाँ -खामियाँ इतनी हैं कि वह विश्व भाषा की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकेगी। रूस, जापान, चीन जैसे देशों की तकनीकी प्रगति अंगरेजी के बिना ही हुई. व्यापारिक जरूरतों के लिए वे अब अंगरेजी का ज्ञान रख रहे हैं, पर उस पर निर्भर नहीं हैं. <br />- भाषा से कोई गुलाम नहीं होगा | <br />- भाषा ही मानसिक गुलाम बनाती है. अंग्रेजों ने भारत में अंगरेजी के माध्यम से जो मानसिक गुलामी थोपी है वह अब भी मिटी नहीं है. <br />लोग तो आपकी भाषा भी सीखने के लिए तैयार हैं <br />- किसी सदाशयता के कारण नहीं विश्व के सबसे बड़े बाजार के क्रेता तक पहुँच बनाने के स्वार्थ के कारण। <br />किन्तु उस देश की मर्यादा इस लायक तो हो <br />- इस देश की मर्यादा तमाम कमियों के बावजूद अन्य किसी भी देश की मर्यादा से बहुत श्रेष्ठ है. <br />अमेरिका में जितनी भाषाएं हैं शायद ही किसी देश में नहीं हैं |<br />- अमरीका में अपनी भाषा ही नहीं है. प्रवासियों की भाषाएँ उपयोग की जाती हैं. उसके बाद भी जितनी भाषाएँ अमेरिका में बोली जाती हैं उनसे भाषाएँ अधिक भारत के कई प्रांतों में बोली जाती हैं. <br />-अमेरिका के लोग भी हिन्दी बोल रहे हैं और सीख रहे हैं तो क्या अमेरिकन भारत के गुलाम हो जायेंगे | <br />- स्वहित में स्वेच्छा से सीखना और विदेशियों द्वारा खुद के स्वार्थ साधन हेतु बलात लादने में आकाश-पाताल का अंतर है. <br />-भारत में अंग्रेजी थी और रहेगी, अंग्रेजी के कारण ही भारत आज़ विश्व के साथ उठ- बैठ रहा है और व्योपार बढ़ा रहा है <br />- व्यापार केवल भाषा के कारण नहीं घटता-बढ़ता, माल की गुणवत्ता, कीमत, समय पर उपलब्धता और उपयोगिया पर निर्भर करता है. <br />अंग्रेजी के कारण ही हम भारत से अमेरिका आये | <br />- यह आपका सौभाग्य सकता है, आप इसलिए अंगरेजी का ढोल पीटें। <br />इस अंग्रेजी के कारण ही मोदी गुजरात में सरदार पटेल की इस मीनार को बना सकेंगे <br />- जी नहीं। भारत का निर्माण भारतीयों के संकल्प, आवश्यकता, संसाधनों से ही होगा। <br />क्योकि अमेरिका में अंग्रेजी से ही हम भारत को इस काबिल बना सके हैं कितना एनआरआई का पैसा रोज़ भारत आता है आपको अंदाज़ा भी न होगा | वह अलग बात है कि भारत के मंदिरों का ब्लैक किया धन डालरों में अमेरिका आता है | <br />- भारत प्रवासियों के धन पर निर्भर नहीं है. वह पासंग की तरह है. देश के वार्षिक बजट और प्रवासियों से आये धन की तुलना करें। मैं प्रवासियों की अवमानना नहीं करना चाहता पर यह सिर्फ मुगालता है कि वे ही भारत को चला रहे हैं. <br />-स्विश बैंक में कोई पैसा नहीं है <br />- स्विस बैंक सूचियाँ जारी कर चुके हैं जो अंतर्जाल पर हैं. <br /> ये सब राजनीति है भारत के लोगों को उल्लू बनाने के लिए, उनका वोट लेने के लिए कितना ड्रामा सरकार को करना पड़ता है | किन्तु लोग वही, खेत वही, व्यवस्था- संस्कृति वही, सोच वही आदि | <br />- चुनाव में राजनीति और ड्रामा अमेरिका में भी होता है, घोषणाएँ, आश्वासन और चुनाव के बाद कुछ अन्य नीति... <br />हर आदमी आज़ादी के लिए, इस आज़ादी में रो रहा है | हर आदमी अपने हिसाब कि आज़ादी चाहता है वह नामुमकिन है | समाज़ अभी भी अंधा है, अंधविश्वासी है; इस वर्ण- व्यवस्था में <br />- आजादी के लिए अरण्यरोदन नहीं हो रहा है, आजादी की बेहतरी के लिये चिंतन हो रहा है. इतनी जनसँख्या वहाँ हो व्यवस्था नष्ट हो जाए. भारत इतनी बड़ी जनसँख्या को ही नहीं पड़ोसी देशों से आये घुसपैठी करोड़ों लोगों को भी पालता है. sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-65609718212425205192014-08-15T16:57:27.057+05:302014-08-15T16:57:27.057+05:30माननीय बंधुवर
अपने रचना पढ़ी,आभार।
रचना का स्वर ...माननीय बंधुवर <br />अपने रचना पढ़ी,आभार। <br />रचना का स्वर आत्मावलोकन, आत्मालोचन के पथ से आत्मोन्नयन के लक्ष्य तक जाने का है। आपने जो विचार व्यक्त किये हैं वह रचना का स्वर नहीं है. <br />-<br />मानवता और इंसानियत से अगर हम रहते तो अंग्रेज़ कभी भी भागकर नहीं <br />जाते | - उक्त से ध्वनित होता है कि हम अमानवीय और इंसानियत से दूर थे इसलिए अंग्रेज चले गये. इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। यदि हम ऐसे ही थे तो वे सात समुद्र पार से आये ही क्यों थे? हम उनसे अधिक संपन्न, समृद्ध और सुसंस्कृत थे इसलिए वे हमारी कमजोरियों का लाभ उठकर घुस आये थे. लम्बे संघर्ष और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों ने अंग्रेजों को दुम दबाकर भागने के लिये मजबूर कर दिया। <br />अंग्रेज़ इस वर्ण- व्यवस्था के खिलाफ <br />चल रहे थे जो गाँधी को मंज़ूर नहीं था | - यह भी गलत है. अंग्रेज 'बाँटो और राज्य करो' के पक्षधर थे. उन्हें वर्ण व्यवस्था से कुछ लेना-देना नहीं था. - गांधी वर्ण व्यवस्था के पक्षधर नहीं विरोधी थे. वे शूद्रों को हरिजन कहकर अन्य वर्णों के साथ बराबरी व्यवहार करने के हिमायती थे. <br />अंग्रेज़ देश में समता देखना चाहते थे <br />और देश को जीवंत भी - यह भी नितांत गलत है. अंग्रेजों ने भारत क्या किसी भी अन्य देश को प्रयास नहीं किया। नाम मात्र के सुधार प्रशासन के सञ्चालन या सम्पदा लूटने लिये किये। <br />-यदि कोई पैसा लगता है तो अपने हिसाब से काम भी करना चाहता है | जैसे रेलें, नदियाँ, लोहे के पुल, सती प्रथा, बाल-विवाह, आदि | - ईस्ट इंडिआ कंपनी या अंग्रेज भारत में पैसा लगाने की औकात नहीं रखते थे. वे भारत और अन्य देशों की संपदा लूटकर ले गये थे. sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-35506541473067881382014-08-15T16:46:35.307+05:302014-08-15T16:46:35.307+05:30'Dr.M.C. Gupta' mcgupta44@gmail.com [ekavi...'Dr.M.C. Gupta' mcgupta44@gmail.com [ekavita] <br /> <br />संदर्भ--हम भारत को इस काबिल बना सके हैं, कितना एनआरआई का पैसा रोज़ भारत आता है<br /><br />*****<br /><br /><br />४९४२. एन आर आई भगवन जी हम पर कृपा करो –ईकविता १५ अगस्त २०१४<br /> <br /> <br />एन आर आई भगवन जी हम पर कृपा करो <br />दुख सह कर भारत की झोली भरा करो <br /> <br />जाहिल, काहिल, भूखे-नंगे प्राणी हम <br />माफ़ खता कर करुणा हम पर सदा करो <br /> <br />भारत नैया जर्जर गोते लगा रही <br />जब डूबें उद्धार हमारा किया करो<br /> <br />तुम ना होते कौन बचाता फिर हमको<br />निज चरणों में शरण हमें तुम दिया करो <br /> <br />वापस अब तुम भूले से भी मत आना<br />ख़लिश विदेशों में ही खुश तुम रहा करो. <br /><br /> <br />--इस रचना का श्रेय श्री राम बाबू गौतम के इस कथन को है—“हम भारत को इस काबिल बना सके हैं, कितना एनआरआई का पैसा रोज़ भारत आता है”.<br /> <br />-- महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’<br />१५ अगस्त २०१४mcgupta44@gmail.com [ekavita]noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-19282616651078046272014-08-15T16:45:47.985+05:302014-08-15T16:45:47.985+05:30achal verma achalkumar44@yahoo.com [ekavita]
आचा...achal verma achalkumar44@yahoo.com [ekavita] <br /><br />आचार्य जी , <br />समसामयिक रचना | दो पंक्तिया मेरी ओर से :<br />"परहित होता धर्म और परपीड़ा होता पाप <br />यही याद रखना है केवल यदि ज्ञानी हैं आप <br />लेकिन पीड़ा जो देते हैं उनको पीड़ा देना <br />आवश्यक हुआ तो जीवन भी उनसे हर लेना <br />इसीलिए क़ानून बना जो सबको अभय बनाता <br />आतंकी हैं उनको सज़ा देना हमको सिखलाता ||......अचल "achalkumar44@yahoo.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-60556315199149542232014-08-15T16:43:59.516+05:302014-08-15T16:43:59.516+05:30'ksantosh_45@yahoo.co.in' ksantosh_45@yaho...'ksantosh_45@yahoo.co.in' ksantosh_45@yahoo.co.in [ekavita]<br /> <br />अति सुन्दर भाव पिरोता गीत. बधाई.<br />सन्तोष कुमार सिंह'ksantosh_45@yahoo.co.in'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-1743141113206242402014-08-15T16:43:08.578+05:302014-08-15T16:43:08.578+05:30Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com [ekavita]
सलिल...Mahesh Dewedy mcdewedy@gmail.com [ekavita] <br /> <br />सलिल जी,<br /> दोहे सामयिक भी हैँ और सही जगह चोट करने वाले भी. बधाई.<br /><br /><br />महेश चंद्र द्विवेदीMahesh Dewedy mcdewedy@gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-18513271439926435882014-08-15T16:42:29.068+05:302014-08-15T16:42:29.068+05:30Kusum Vir kusumvir@gmail.com [ekavita]
चिंतन - ...Kusum Vir kusumvir@gmail.com [ekavita] <br /> <br />चिंतन - मन्थन योग्य अति सुन्दर, सारगर्भित रचना, आ० आचार्य जी l <br />बधाई एवं सराहना स्वीकार करें l <br />सादर,<br />कुसुम Kusum Vir kusumvir@gmail.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-26250251846880248362014-08-15T16:41:42.263+05:302014-08-15T16:41:42.263+05:30vijay3@comcast.net [ekavita]
बहुत ही सुन्दर रचन...vijay3@comcast.net [ekavita] <br /> <br />बहुत ही सुन्दर रचना, ...सोच के लिए बहुत ही लाभदायक। बधाई।<br />सादर,<br />विजय निकोरvijay3@comcast.netnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-25588884009737185152014-08-15T16:40:44.084+05:302014-08-15T16:40:44.084+05:30Shriprakash Shukla wgcdrsps@gmail.com [ekavita]
...Shriprakash Shukla wgcdrsps@gmail.com [ekavita]<br /> <br />आदरणीय आचार्य जी,<br /><br />सुन्दर सदैव की तरह । बधाई हो <br /><br />सादर <br />श्रीShriprakash Shuklanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-8879165624981835172014-08-15T10:00:36.442+05:302014-08-15T10:00:36.442+05:30'ksantosh_45@yahoo.co.in' ksantosh_45@yaho...'ksantosh_45@yahoo.co.in' ksantosh_45@yahoo.co.in [ekavita]<br /><br /> <br />अति सुन्दर भाव पिरोता गीत. बधाई.<br />सन्तोष कुमार सिंह'ksantosh_45@yahoo.co.in'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-87322006266204115052014-08-15T09:59:59.005+05:302014-08-15T09:59:59.005+05:30Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com [ekavita] :
आ. आ...Ram Gautam gautamrb03@yahoo.com [ekavita] :<br /> <br />आ. आचार्य 'सलिल' जी,<br /> प्रणाम: <br />आपकी रचना एक बड़ा प्रश्न हम सब से पूछ रही है जिसका उत्तर भी आपने अंतिम पंक्तियों <br />में दे दिया है | मानवता और इंसानियत से अगर हम रहते तो अंग्रेज़ कभी भी भागकर नहीं <br />जाते | क्योंकि अंग्रेज़ इस वर्ण- व्यवस्था के खिलाफ चल रहे थे जो गाँधी को मंज़ूर नहीं था | <br />अंग्रेज़ देश में समता देखना चाहते थे और देश को जीवंत भी | यदि कोई पैसा लगता है तो अपने हिसाब से काम भी करना चाहता है | जैसे रेलें, नदियाँ, लोहे के पुल, सती प्रथा, बाल-विवाह, आदि |<br /><br />आज़ हर देश की दो भाषाएं हैं हम अंग्रेजी के पीछे पड़े हैं जैसे-२ तकनीकी बढ़ेगी पूरा विश्व अंग्रेजी में ही बात करेगा | भाषा से कोई गुलाम नहीं होगा | लोग तो आपकी भाषा भी सीखने के लिए तैयार हैं किन्तु उस देश की मर्यादा इस लायक तो हो | अमेरिका में जितनी भाषाएं हैं शायद ही किसी देश में नहीं हैं | अमेरिका के लोग भी हिन्दी बोल रहे हैं और सीख रहे हैं तो क्या अमेरिकन भारत के गुलाम हो जायेंगे | भारत में अंग्रेजी थी और रहेगी, अंग्रेजी के कारण ही भारत आज़ विश्व के साथ उठ- बैठ रहा है और व्योपार बढ़ा रहा है अंग्रेजी के कारण ही हम भारत से अमेरिका आये | इस अंग्रेजी के कारण ही मोदी गुजरात में सरदार पटेल की इस मीनार को बना सकेंगे क्योकि अमेरिका में अंग्रेजी से ही हम भारत को इस काबिल बना सके हैं कितना एनआरआई का पैसा रोज़ भारत आता है आपको अंदाज़ा भी न होगा | वह अलग बात है कि भारत के मंदिरों का ब्लैक किया धन डालरों में अमेरिका आता है |<br /><br />स्विश बैंक में कोई पैसा नहीं है ये सब राजनीति है भारत के लोगों को उल्लू बनाने के लिए, उनका वोट लेने के लिए कितना ड्रामा सरकार को करना पड़ता है | किन्तु लोग वही, खेत वही, व्यवस्था- संस्कृति वही, सोच वही आदि | हर आदमी आज़ादी के लिए, इस आज़ादी में रो रहा है | हर आदमी अपने हिसाब कि आज़ादी चाहता है वह नामुमकिन है | समाज़ अभी भी अंधा है, अंधविश्वासी है; इस वर्ण- व्यवस्था में -<br /><br /> - फूल, फल, मिठाई, धन, दूध, अनाज़, मुर्दा आदि कितना विश्वासों के तहत पानी में बहा देता<br /> है | जिसे पवित्र मानते हैं उन्हें गंदा कर देते हैं | हमारे पूर्वजों ने ऐसा बताया है जिसे हम <br /> पढ़- लिख कर भी नहीं बदल पा रहे हैं | यही विश्वास भूत-प्रेत को जन्म देते हैं जो गरीबों के<br /> घरों में ही रहते हैं | विचारे अमीरों के घर नहीं जाते |<br /><br /> - येल यूनिवर्सिटी - कनेक्टिकट के एक वैज्ञानिक ने सबको चेलेंज कर दिया था कि 'भगवान <br /> कहीं नहीं है' क्योंकि वह हियुमन सेल पर काम कर रहे थे | ये सेल से ही हम जीवित हैं न <br /> कि उस ईश्वर के द्वारा |<br /><br /> - सोमनाथ मंदिर में मुझसे ३१०० रुपये में शिव लिंग पर पूजा के लिए पैसा मांगा गया मैं<br /> वहां भौंचक्का रह गया | दूध की जगह चूना- खड़िया के पानी से ठगा जा रहा है | <br /><br /> - पेरिस के एक गुरुद्वारे में मुझसे माथा टेकने के लिए कहा गया और सिर बांधने के लिए | मैंने<br /> कह दिया मैं स्कूल गया हूँ, स्कूल में माथा टेकना नहीं सिखाया जाता | मेहनत करना<br /> सिखाया जाता है | यदि माथा टेकने से सब कुछ मिल जाता तो स्कूल बंद हो जाते |<br /> <br />यदि अंग्रेज़ भारत में रहे होते तो देश में आज़ सड़कों पर, गंदी नालियों पर मलमूत्र न बह रहे होते | कम से कम लोगों को पीने के लिए पानी अवश्य मिलता | खेतों के लिए सिचाई के लिए पानी का प्रबंध करते, हर नुक्कड़ पर हनुमान की मूर्ति न लगती | सड़कें एक साल में खराब न होतीं |<br /> सादर- आरजी <br /> <br /> सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-<br /> स्वर्ग तभी तो <br /> हो पायेगा<br /> धरती पर आबाद.<br /> कब होंगे आजाद? <br /> कहो हम<br /> कब होंगे आजाद?....<br /> *<br />Ram Gautam gautamrb03@yahoo.comnoreply@blogger.com