tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post3200464563750078209..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : doha gatha 3 acharya sanjiv verma 'salil'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-27078772217115703682013-05-09T10:00:23.745+05:302013-05-09T10:00:23.745+05:30कुसुम जी
आपका सस्नेह स्वागत है. जो जानकारी दी जार...कुसुम जी<br /><br />आपका सस्नेह स्वागत है. जो जानकारी दी जारही है उसे आत्मसात करती चलें।sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-72570606990919788322013-05-09T10:00:03.787+05:302013-05-09T10:00:03.787+05:30आचार्य जी,
मैं आपको अपना गुरु पहले ही मान चुकी हूँ...आचार्य जी,<br />मैं आपको अपना गुरु पहले ही मान चुकी हूँ, इसलिए आपके द्वारा दी जा रही सीख को <br />अवश्य आत्मसात करूँगी l <br />सादर, साभार,<br /><br /><br />कुसुम वीरKusum Vir via yahoogroups.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-12601415756288120292013-05-09T09:59:21.444+05:302013-05-09T09:59:21.444+05:30दीप्ति जी मैं तो स्वयं को विद्यार्थी वह भी सबसे अध...दीप्ति जी मैं तो स्वयं को विद्यार्थी वह भी सबसे अधिक कमजोर विद्यार्थी मानता हूँ। आप जैसे ज्ञानवानों की संगत में कुछ सीखने का प्रयास करता हूँ। <br /><br />कुसुम जी यह प्रयास सफल तब होगा जब कुछ ऐसे साथी दोहा रचने की प्रेरणा और सामर्थ्य पायें जो अभी दोहा नहीं रचते।sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-73885973743510051742013-05-09T09:59:03.690+05:302013-05-09T09:59:03.690+05:30कुसुम जी, तभी तो संजीव जी 'आचार्य' की उप...कुसुम जी, तभी तो संजीव जी 'आचार्य' की उपाधि से विभूषित हैं ! <br /><br /> दीप्ति deepti guptanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-64376680066893783782013-05-09T09:58:45.404+05:302013-05-09T09:58:45.404+05:30आदरणीय सलिल जी,
आपने दोहा गोष्ठी आयोजित कर दोहों ...आदरणीय सलिल जी, <br />आपने दोहा गोष्ठी आयोजित कर दोहों की जो विशद, अनुपम व्याख्या प्रस्तुत की है, वह तो अद्भुत है l <br />क्या बात ! क्या बात ! क्या बात !<br />सादर,<br />कुसुम वीरKusum Vir via yahoogroups.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-39665728503243591622013-05-09T09:56:16.137+05:302013-05-09T09:56:16.137+05:30achal verma
आ. आचार्य जी ,
इस ग्यान के लिए आपक...achal verma<br /> <br />आ. आचार्य जी , <br /><br />इस ग्यान के लिए आपका शत शत आभार ।<br /><br />अभी तक तो हम यही समझते रहे कि हम जो लिखते है वो सब चलेगा <br />लेकिन अपनी भाषा इतनी वैग्यानिक है इसका अब पता चल रहा है आपके <br />इतनी विशद विवेचना तथा लेखों द्वारा।<br />बहुत बहुत धन्यवाद ॥<br />नीचे मै अपने एक दोहे का वजन जानना चाहता हूँ :<br /> ( आशा है इसको दोहा कहा जा सकता है )<br />"इस एक देह में ही मेरे रहते मिल जुल देवता सभी<br />चर अचर सभी का वास यहाँ अर्जुन लो देखो यहाँ अभी " ( गीता ११-७ का हिन्दी रूपान्तर )achal vermanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-57018811816478980742013-05-09T09:10:29.198+05:302013-05-09T09:10:29.198+05:30Mamta Sharma @ yahoogroups.com
आदरणीय सलिल जी,
...Mamta Sharma @ yahoogroups.com<br /> <br />आदरणीय सलिल जी,<br /><br />इस ज्ञान गंगा के लिए हम नौसिखिये आप के आभारी हैं .<br />सादर ममताmamta sharmanoreply@blogger.com