tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post3153580629577580040..comments2024-03-29T15:18:43.757+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : गीत : ... सच है संजीव 'सलिल'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-13052323719979343862013-02-20T12:58:30.005+05:302013-02-20T12:58:30.005+05:30आत्मीय प्राची जी, सौरभ जी, लक्ष्मण जी, रामशिरोमणि ...आत्मीय प्राची जी, सौरभ जी, लक्ष्मण जी, रामशिरोमणि जी, संदीप जी, गणेश जी, विन्द्येश्वरी जी, तुषार जी, परवीन जी,<br /><br />पढ़ा-गुना रचना को प्रियवर धन्य हुए हम धन्यवाद शत ...<br /><br />वरे = वरण किया,<br />देना-पावना = देना-पाना या देना-लेना sanjiv verma 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-40587136713800164702013-02-20T12:47:55.836+05:302013-02-20T12:47:55.836+05:30 Parveen Malik
आदरणीय आचर्य जी ,
तुमसे म... Parveen Malik <br /> आदरणीय आचर्य जी ,<br /><br /> तुमसे मिलकर जान सका यह एक-एक का योग एक है. <br /> सृजन एक ने किया एक का बाकी फिर भी रहा एक है..<br /> खुद को खोकर खुद को पाया, बिसरा अपना और पराया.<br /> प्रिय! कैसे तुमको बतलाऊँ, मर-मिटकर नव जीवन पाया..<br /> तुमने कितना चाहा मुझको या मैं कितना तुम्हें चाहता?<br /> नाप माप गिन तौल निरुत्तर है विवेक, मन-अर्पण सच है.<br /><br /> सच्ची अभिव्यक्ति ... बधाई स्वीकारे श्रीमान जीparveen maliknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-36554415868894701292013-02-20T12:47:14.611+05:302013-02-20T12:47:14.611+05:30Tushar Raj Rastogi
स्रजनात्मक रचना के लिए बध...Tushar Raj Rastogi <br /><br /> स्रजनात्मक रचना के लिए बधाई | आभारtushar raj rastoginoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-66910084955369793222013-02-20T12:46:30.212+05:302013-02-20T12:46:30.212+05:30विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी
आदरणीय आचार्य ज...विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी<br /><br /> आदरणीय आचार्य जी!सादर नमन!<br /><br /> //मिलन-क्षणों में मन-मंदिर में एक-दूसरे को पाया है.<br /> मुक्त भाव से निजता तजकर, प्रेम-पन्थ को अपनाया है..<br /> ज्यों की त्यों हो कर्म चदरिया मर्म धर्म का इतना जाना-<br /> दूर किया अंतर से अंतर, भुला //पावना//-देना सच है.<br /><br /> कितना गहन-गम्भीर भाव निस्सृत हुआ है।बलिहारी जाऊं।<br /> गुरुदेव इस //पावना// शब्द का क्या अर्थ है?<br /><br /> तन पाकर तन प्यासा रहता, तन खोकर तन वरे विकलता.<br /><br /> //वरे// कुछ समझ में नहीं आया।vindhyeshvari prasad tripathinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-51138120065143532302013-02-20T12:45:18.242+05:302013-02-20T12:45:18.242+05:30Er. Ganesh Jee "Bagi"
//तुमसे मिलकर...Er. Ganesh Jee "Bagi"<br /><br /> //तुमसे मिलकर जान सका यह एक-एक का योग एक है.<br /> सृजन एक ने किया एक का बाकी फिर भी रहा एक है..//<br /><br /> क्या कहूँ आदरणीय इस रचना पर , शब्द साथ नहीं दे रहें हैं , बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना, आचार्य जी इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर नमन करता हूँ और बधाई प्रेषित करता हूँ ।Er. Ganesh Jee "Bagi"noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-28535543402707458032013-02-20T12:44:34.246+05:302013-02-20T12:44:34.246+05:30SANDEEP KUMAR PATEL
वाह वाह सर जी
बहता ह...SANDEEP KUMAR PATEL<br /><br /> वाह वाह सर जी<br /><br /> बहता ही चला गया इस काव्य सरिता में<br /><br /> आहा क्या ही मधुर स्वरुप प्रस्तुत किया है प्रेम का<br /><br /> शब्दों में अपने भाव कह नहीं पा रहा हूँ<br /><br /> बहुत बहुत बधाई<br /><br /> आप से सदैव सीखने को मिलता है सर जी<br /><br /> अनुज का प्रणाम स्वीकारें<br /><br /> और स्नेह यूँ ही बनाये रखें ........SANDEEP KUMAR PATELnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-16669063416409462172013-02-20T12:43:33.936+05:302013-02-20T12:43:33.936+05:30ram shiromani pathak
आदरणीय संजीव जी,
सा...ram shiromani pathak<br /><br /> आदरणीय संजीव जी,<br /><br /> सादर प्रणाम!!!!!!!!!!!!<br /><br /> और कुछ कहने की ज़रुरत नहीं है ..........................ram shiromani pathaknoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-5501591418536852362013-02-20T12:42:39.581+05:302013-02-20T12:42:39.581+05:30Laxman Prasad Ladiwala
आदरणीय श्री सौरभ जी और...Laxman Prasad Ladiwala<br /><br /> आदरणीय श्री सौरभ जी और डॉ प्राची जी की टिप्पणियों से पुरतः सहमत होने के अतिरिक्त मेरे पास कुछ <br /> कहने को नहीं है आदरणीय श्री संजीव सलिल जी, मुझे लगता है निम्न पक्तियों के दार्शनिक तथ्य की <br /> समझ के बाद कुछ भी शेष नहीं रहता -<br /> तन पाकर तन प्यासा रहता, तन खोकर तन वरे विकलता.<br /> मन पाकर मन हुआ पूर्ण, खो मन को मन में रही अचलता. <br /> जन्म-जन्म का संग न बंधन, अवगुंठन होता आत्मा का.<br /> प्राण-वर्तिकाओं का मिलना ही दर्शन है उस परमात्मा का..Laxman Prasad Ladiwalanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-60886919984343938182013-02-20T12:41:48.796+05:302013-02-20T12:41:48.796+05:30 Saurabh Pandey
ऐसी रचनाओं पर कुछ कहा नहीं जा ... Saurabh Pandey<br /> ऐसी रचनाओं पर कुछ कहा नहीं जा सकता, आदरणीय आचार्यजी, बल्कि मुग्धावस्था में एक पाठक रोम-रोम में हो रही झंकार को जीता है. जिस अनुभव और समझ को आपने साझा किया है वह एक विन्दु के बाद की समझ है. नियंता हर पाठक को उस सोपान पर उर्ध्वाधर बढ़ने को नियत करे.<br /><br /> इन पंक्तियों पर बार-बार बधाई स्वीकार करें आदरणीय -<br /><br /> तुमसे मिलकर जान सका यह एक-एक का योग एक है.<br /> सृजन एक ने किया एक का बाकी फिर भी रहा एक है..<br /> खुद को खोकर खुद को पाया, बिसरा अपना और पराया.<br /> प्रिय! कैसे तुमको बतलाऊँ, मर-मिटकर नव जीवन पाया..<br /> तुमने कितना चाहा मुझको या मैं कितना तुम्हें चाहता?<br /> नाप माप गिन तौल निरुत्तर है विवेक, मन-अर्पण सच है.<br /><br /> सादरSaurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-56769723620395028502013-02-20T12:40:39.040+05:302013-02-20T12:40:39.040+05:30Dr.Prachi Singh
आदरणीय संजीव जी,
सादर प्...Dr.Prachi Singh<br /><br /> आदरणीय संजीव जी,<br /><br /> सादर प्रणाम!<br /><br /> आपकी यह रचना प्रेम को उत्कृष्टतम ऊंचाइयों पर जीती है.<br /><br /> भावों की शुचिता और कथ्यसान्द्रता पर मन मुग्ध है.<br /><br /> बहुत बहुत बधाई इस सृजन के लिए.<br /><br /> सादर.<br />Dr.Prachi Singhnoreply@blogger.com