tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post3062254151671137768..comments2024-03-29T15:18:43.757+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : मुक्तिका: देखो -- संजीव 'सलिल'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger23125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-46437077843469159392011-10-30T09:32:18.088+05:302011-10-30T09:32:18.088+05:30siyasachdev
खुबसूरत ग़ज़ल के दिली मुबारकवाद...siyasachdev <br /><br /> खुबसूरत ग़ज़ल के दिली मुबारकवादsiyasachdevnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-80723752979075277242011-10-30T09:31:48.108+05:302011-10-30T09:31:48.108+05:30Rajendra Swarnkar
एक और गौहर !
जय हो ...Rajendra Swarnkar <br /> एक और गौहर ! <br /><br /> जय हो आचार्य सलिल जी !Rajendra Swarnkarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-57264702576055178612011-10-30T09:14:52.921+05:302011-10-30T09:14:52.921+05:30Sanjay Mishra 'Habib'
आनंद है आपकी य...Sanjay Mishra 'Habib' <br /><br /> आनंद है आपकी यह पेशकश आद सलील सर,<br /><br /> रात के गर्भ से सूरज उगाना.... वाह वाह ...<br /><br /> मुश्किल पड़ने पर आदाब बजाना... सचमुच मुश्किलें आसान कर देती हैं....:))<br /><br /> शानदार पेशकश के लिए सादर बधाई स्वीकारें...Sanjay Mishra 'Habib'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-78178934718329384922011-10-30T09:13:33.329+05:302011-10-30T09:13:33.329+05:30आपके औदार्य के प्रति नतमस्तक हूँ.आपके औदार्य के प्रति नतमस्तक हूँ.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-11665931738300947802011-10-30T09:13:08.144+05:302011-10-30T09:13:08.144+05:30धर्मेन्द्र कुमार सिंह
हर अश’आर आपके जीवनानुभ...धर्मेन्द्र कुमार सिंह <br /><br /> हर अश’आर आपके जीवनानुभव से परिपूर्ण है। बधाई कम है इस ग़ज़ल के लिए, नमन स्वीकार कीजिएधर्मेन्द्र कुमार सिंहnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-74433958609634885882011-10-30T09:12:33.363+05:302011-10-30T09:12:33.363+05:30Ambarish Srivastava
आपका हार्दिक स्वागत है ! ...Ambarish Srivastava <br /> आपका हार्दिक स्वागत है ! सादर :Ambarish Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-43539217951542078792011-10-30T09:11:56.937+05:302011-10-30T09:11:56.937+05:30अम्बरीश जी!
आप जैसे सुधी पाठक को पाकर रचना और ...अम्बरीश जी!<br /> आप जैसे सुधी पाठक को पाकर रचना और रचनाकार दोनों धन्यता अनुभव करते हैं.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-87691239621327535852011-10-30T09:11:30.362+05:302011-10-30T09:11:30.362+05:30Ambarish Srivastava
//बंदगी क्या है ये दुनिया...Ambarish Srivastava <br /> //बंदगी क्या है ये दुनिया न बता पायेगी.<br /> जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.//<br /><br /> धन्य आचार्य जी दे दी है यहाँ प्यारी ग़ज़ल,<br /><br /> भाव अनमोल भरे दिल में बसा कर देखो.<br /><br /> आदरणीय आचार्य जी ! <br /> इस अमूल्य मुक्तिका के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें !Ambarish Srivastavanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-11767058136050510652011-10-30T09:10:41.584+05:302011-10-30T09:10:41.584+05:30बागी जी!
बहुत-बहुत धन्यवाद.बागी जी!<br /> बहुत-बहुत धन्यवाद.दिव्य नर्मदा divya narmadahttps://www.blogger.com/profile/17701696754825195443noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-7596058321859501672011-10-30T09:10:20.578+05:302011-10-30T09:10:20.578+05:30बंदगी क्या है ये दुनिया न बता पायेगी.
जिंदगी क...बंदगी क्या है ये दुनिया न बता पायेगी.<br /> जिंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो.<br /><br /> वाह ! <br /> बहुत ही खुबसूरत मुक्तिका, ग़ज़ल के लिहाज़ से मकता अंतिम शेर के रूप में आता है, बधाई आचार्य जी इस खुबसूरत प्रस्तुति हेतु |Ganesh Jee "Bagi"noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-39765352448554830432011-10-30T09:09:03.498+05:302011-10-30T09:09:03.498+05:30रवि भाई!
आपकी गुणग्राहकता को नमन.रवि भाई!<br /> आपकी गुणग्राहकता को नमन.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-51012217494367931452011-10-30T09:08:47.061+05:302011-10-30T09:08:47.061+05:30मंजिलें चूमने कदमों को खुद ही आयेंगी.
आबलों से...मंजिलें चूमने कदमों को खुद ही आयेंगी.<br /> आबलों से कभी पैरों को सजा कर देखो..<br /><br /> आपकी रचना का यह सब से उत्तम शेअर है, बधाई स्वीकार करें.Ravi Prabhakarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-5343507532898479132011-10-30T09:05:44.995+05:302011-10-30T09:05:44.995+05:30Arvind Chaudhari
क्या बात है आदरणीय सलिल जी ...Arvind Chaudhari <br /><br /> क्या बात है आदरणीय सलिल जी !<br /><br /> ख़ूबसूरत ग़ज़ल....Arvind Chaudharinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-65075050736518013932011-10-30T09:05:11.261+05:302011-10-30T09:05:11.261+05:30योगराज जी!
आपको रचना रुची तो मेरा लेखन सार्थक ...योगराज जी!<br /> आपको रचना रुची तो मेरा लेखन सार्थक हो गया.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-18418065915501134162011-10-30T09:04:47.075+05:302011-10-30T09:04:47.075+05:30योगराज प्रभाकर
बेहतरीन प्रस्तुति आचार्य सलिल...योगराज प्रभाकर <br /><br /> बेहतरीन प्रस्तुति आचार्य सलिल जी, पढ़कर दिल को सुकून पहुँचा ! साधुवाद स्वीकारें मान्यवर !योगराज प्रभाकरnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-10723783848615417142011-10-30T09:03:53.746+05:302011-10-30T09:03:53.746+05:30आपकी गुणग्राहकता को नमन.आपकी गुणग्राहकता को नमन.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-17299653449431041452011-10-30T09:03:28.556+05:302011-10-30T09:03:28.556+05:30आदरणीय सलिल जी
प्रणाम !
बहुत अच्छी रचना ...आदरणीय सलिल जी<br /><br /> प्रणाम !<br /><br /> बहुत अच्छी रचना है आपकी …<br /><br /> बधाई !Rajendra Swarnkarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-49555702574354366922011-10-30T09:02:23.038+05:302011-10-30T09:02:23.038+05:30पढ़कर कोई भी मंत्रमुग्ध हो सकता है ............. ...पढ़कर कोई भी मंत्रमुग्ध हो सकता है ............. बस यही कह सकता हूँ .........<br /> अनुपम ......... अतुलनीय ........ नमन आचार्य जीsatish mapatpurinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-45062229433234813572011-10-30T09:01:30.857+05:302011-10-30T09:01:30.857+05:30आदरणीय,
किन्तु मैं तो कहूँगा कि मूलतः हर पाठक...आदरणीय, <br /><br /> किन्तु मैं तो कहूँगा कि मूलतः हर पाठक हृदय से भावुक होता है. पाठ्य-रचनाओं की भावनाओं के अनुरूप उनके संसार में उतरता और विचरता है.<br /><br /> किन्तु, रचनाकार होना भावुकता से आगे संप्रेषणीय़ता के मानकों पर उतरना भी हुआ करता है न. अन्यथा आदिशिव को अनवरत साधना करने की और शब्द को मात्रिक अवलियाँ देने हेतु प्रयासों की आवश्यकता ही क्या थी ? अक्षर ब्रह्म ही तो हैं. ब्रह्म कभी कार्मिक भी होता है क्या? यह तो प्रकृति (शक्ति) का हुआ आवश्यक प्रयास ही होता है जिसके कारण अक्षर प्रभावी बनते हैं. यह प्रकृति ही न रचनाकारों को उद्वेलित कर प्रयासरत कराती है. <br /><br /> अब संचित-कर्म के अनुसार रचनाकारों की जैसी ग्राह्यता होती है वैसा ही या अपनी समझ के अनुसार उससे आगे का वे प्रारब्धिक प्रयास करते हैं. कुछ छिछले में उछलते-कूदते हैं और कुछ गहरे में पैठ लम्बी-लम्बी पौरते हैं. :-)<br /><br /> शायद में तथ्य साझा कर पाया. सादर...Saurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-34846502266749248362011-10-30T09:00:53.308+05:302011-10-30T09:00:53.308+05:30सौरभ जी!
मूलतः हर पाठक एक रचनाकार भी होता है.....सौरभ जी!<br /> मूलतः हर पाठक एक रचनाकार भी होता है... आपकी अध्यवसाय वृत्ति, निरंतर सीखने और सिखाने की ललक असाधारण है. आपका रचना कर्म पूरी गंभीरता और ईमानदारी से किया गया अनुष्ठान है जिसकी सफलता असंदिग्ध है.Saurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-22426994938484363942011-10-30T08:59:38.719+05:302011-10-30T08:59:38.719+05:30सादर ..
मूलतः तो मैं पाठक ही हूँ आचार्यजी. रच...सादर ..<br /><br /> मूलतः तो मैं पाठक ही हूँ आचार्यजी. रचनाकर्म की धृष्टता तो मैं आप सभी के सानिध्य में आ करने लगा हूँ.. :-)))Saurabh Pandeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-87262585463606480062011-10-30T08:59:13.162+05:302011-10-30T08:59:13.162+05:30सौरभ जी!
आपने मुक्तिका की आरम्भिका की द्विपदी ...सौरभ जी!<br /> आपने मुक्तिका की आरम्भिका की द्विपदी की सार्थक सम्यक समीक्षा कर इसकी भाव-भूमि सभी के लिये सुलभ करदी... आभार.<br /> आप जैसे सुहृदय पाठक को पाना सौभाग्य की बात है.sanjiv 'salil'noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-1926257749860812832011-10-30T08:58:47.183+05:302011-10-30T08:58:47.183+05:30आदरणीय सलिलजी,
आपकी प्रस्तुत मुक्तिका के बंद...आदरणीय सलिलजी, <br /> आपकी प्रस्तुत मुक्तिका के बंद इतर की बात करते दीख रहे हैं. जिस वातावरण का निर्माण हो रहा है उसमें आपके शब्द और पाठक के मध्य दूसरा कोई नहीं दीखता.<br /><br /> पहला बंद ही मुग्धकारी है. रात के गर्भ से सूरज का उगना पढ़ने भर से मनस-पटल में घूम जाता है महा-शून्य के गर्भ-अंतर में ऊर्जा का तड़ितवत् कंपित होना और उसका कालबद्ध रुपांतरण होना, यानि इस ब्रह्मांड के चलायमान होने का मूल ! और प्रकृति का विस्तार .. प्यासे को तृप्ति की प्रक्रिया ! वाह-वाह !! क्या कथ्यात्मकता है !<br /><br /> मुश्किलें आयें तो आदाब बजा कर देखो -- क्या अंदाज है ! <br /><br /> दौलते-दिल को लुटा देंगे विहँस पल भर में.<br /> नाजो-अंदाज़ से जो आज लजा कर देखो..<br /><br />-- स्मित-स्मित-सुन्दर मुखारविन्द.. :-)))) <br /><br /> गैर की बात 'सलिल' खुद की रजा कर देखो.. सही है..<br /><br /> आखिरी बंद का फ़लसफ़ा तो ठीक उसी स्वर में खुलता दीख रहा है जिस स्वर में रैदास से लेकर कबीर से लेकर रहीम से लेकर सभी सूफियानी कलमों ने कहा है.<br /><br /> बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. सादर...Saurabh Pandeynoreply@blogger.com