tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post1899552987395081816..comments2024-03-02T15:49:04.728+05:30Comments on दिव्य नर्मदा .......... Divya Narmada : goha gatha 9 acharya sanjiv verma 'salil'Divya Narmadahttp://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comBlogger17125tag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-2208681009949675532013-06-02T20:03:39.503+05:302013-06-02T20:03:39.503+05:30Indira Pratap via yahoogroups.com
प्रिय दीप्...Indira Pratap via yahoogroups.com<br /> <br /> प्रिय दीप्ति , कबीर के इस दोहे पर मुझे कबीर की दो पंक्तियाँ याद आ गईं जो मुझे बहुत पसंद है ,<br /> जल में कुम्भ ,कुम्भ में जल है , बाहर भीतर पानी<br /> फूटहिं कुम्भ जल जलहि समाना यह तत (तत्व ) कहत ग्यानी | एक सृष्टि के दो विभिन्न रूप हैं जो हमें अज्ञान वश दिखाई देते हैं | इसी भेद के कारण आस्था - अनास्था जैसे विषय मानस के मन में उत्पन्न होते हैं | यह सब बातें तर्क शास्त्र को जन्म देती हैं ,जो स्वाभाविक रूप से मनुष्य में रहती हैं , आस्था कहाँ अनास्था में परिवर्तित हो जाती है और अनास्था कब आस्था में परिवर्तित हो जाती है हमें पता ही नही चलता | आदरणीय द्विवेदी जी ने अपनी एक रचना काव्यधारा पर डाली थी ,ओउम् कार होना चाहता हूँ | यद्यपि यह कविता वैज्ञानिक तत्थों पर आधारित थी ( big bang theory ) अगर मैं ठीक समझी हों तो , पर ॐ कार शब्द का प्रयोग इसमें बीज रूप में एक व्यंजना उपस्थित कर रहा है जो उनके मन में छिपे अध्यात्मिक तत्व को भी व्यंजित कर रहा है |अनजाने ही सही | स्कन्द पुराण के अनुसार जब सृष्टि का उद्भव हुआ तो सारे ब्रह्माण्ड में जो ध्वनि उत्पन्न हुई वह ओंकार ही थी जिससे सारा ब्रह्माण्ड गूँज उठा था जो आज भी सब प्राणियों में नाद स्वरूप विद्यमान है | इंदिराindira pratapnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-86890847501592721992013-06-02T20:02:36.967+05:302013-06-02T20:02:36.967+05:30deepti gupta via yahoogroups.com
कबीर निराकार...deepti gupta via yahoogroups.com <br /> <br />कबीर निराकार ब्रह्म को मानते थे और सृष्टि में चारों ओर उस परमशक्ति के दर्शन करते थे ! उन्होंने 'राम' शब्द का खूब प्रयोग किया है लेकिन उनका राम तुलसी के साकार /सगुण राम के ठीक विपरीत निराकार / निर्गुण है ! ( घट घट में है राम........)<br /><br />सृष्टि के कण-कण में अलौकिक शक्ति के दर्शन करते हुए कबीर कहते है -<br /><br />लाली मेरे लाल की , जित देखूं तित लाल,<br />लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल !!<br /><br />हमें कबीर का यह दोहा बहुत पसंद है क्योंकि इसमें 'सत्य' का उद्घाटन किया गया है ! अनेक ज्ञानी जन इस निराकार शक्ति का विरोध<br /> करते हैं ! पर यह 'आस्था' का मुद्दा ( issue) है !<br /><br />इसी तरह साकार ईश्वर के लिए कहा गया है - मानो तो देवता, न मानो तो पत्थर ..........! समूचे विश्व में एक से एक भव्य मंदिर मनुष्य की आस्था का ही प्रतीक है और परिणाम हैं ! उन मंदिरों को तोडना , उन्हें नगण्य समझना, या उनका उपहास करना 'मानने वालों ' की आस्था पे चोट करना है ! विशालकाय , सुन्दर शिल्प कला के अद्भुत नमूने अनेक मंदिर मात्र पत्थर का ढांचा नहीं है, बल्कि उनमें सैकडो लोगो की आस्था और विश्वास स्पंदित है जिसे खंडित कर पाना कठिन ही नहीं - बल्कि नामुमकिन है ! इसलिए सबको अपनी -अपनी आस्था के साथ जीने की स्वतंत्रता होनी चाहिए ! 'आस्था' के विषय बहस के मुद्दे नहीं बनने चाहिए ! कबीर के अनुसार इस तरह की '' तू तू..... मैं, मैं '' में समय नहीं गंवाना चाहिए बल्कि अपने अंदर छुपे उस 'परम शक्ति' के अंश को खोजना और पहचानना चाहिए ! पता नही कब आप 'व्यक्ति' से 'शक्ति' बन जाए और संसार में रहते हुए भी इसके माया - मोह से मुक्त हुए अलौकिक आनंद की अवस्था में पहुँच जाएं !<br /><br />सादर,<br /> दीप्ति deepti guptanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-74694528134108212462013-06-02T19:59:53.358+05:302013-06-02T19:59:53.358+05:30आदरणीय
कुछ शब्द अक्षर रूप न पर ऐसा शब्द टंकित कर... आदरणीय<br />कुछ शब्द अक्षर रूप न पर ऐसा शब्द टंकित करें जिसमें उस अक्षर-रूप का प्रयोग हो फिर शेष अक्षर डिलीट कर दें। टंकित करने पर' ढ़ी ' मिलता है। यदि बढ़िया टंकित करें फिर या और ब को डिलीट करदें तो 'ढ़ि' मिला जाता इस्सके पहले 'ग' लगा दें तो 'गढ़ि' बन जाएगा।sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-37976977592359487932013-06-02T19:59:13.856+05:302013-06-02T19:59:13.856+05:30Mahipal Tomar via yahoogroups.com
रस-खान ' ...Mahipal Tomar via yahoogroups.com <br /> <br />रस-खान ' सलिल' जी , खुसरो-प्रसंग प्यारा और वाक्-चातुर्य ( व्युत्पन्न मति ) का रोचक उदाहरण भी । <br />मेरी पसंद के ढेर दोहों में से दो दोहे -<br />१ - " कामिहि नारि पियारि जिमि ,लोभिहि प्रिय जिमि दाम ,<br /> तिमि रघुनाथ निरंतर , प्रिय लागहु मोहि राम " -तुलसी ,;सरल सी प्रभु वंदना । <br />२ -" गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है ,गढ़ी गढ़ी काढहिं खोट ,<br /> आंतर हाथ सहारि दे ,बाहरि बाहे चोट " - कबीर ,; जिसका मैंने पूरी शिद्दत से अपने profession में पालन किया । रेखांकित को कृपया लघु में पढ़ें , टंकण में मुझसे लघु बना नहीं Mahipal Tomarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-46851199026394319182013-06-02T19:57:53.405+05:302013-06-02T19:57:53.405+05:30shar_j_n
आदरणीय आचार्य जी,
बहुत धन्यवाद, अब लगत...shar_j_n<br /> <br />आदरणीय आचार्य जी,<br /> बहुत धन्यवाद, अब लगता है जल्दी ही समय हाथ लगे और पूरा पूरा कई बार पढूँ आपके लेख. ये दोहा मेरा पसंदीदा दोहा है :<br />कबिरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा नीर. <br />पाछो लागे हरि फिरे, कहत कबीर-कबीर. <br /><br />दुमछल्ले दोहे की कहानी सुन कर मज़ा आया, होली के विषय से जुड़े कई इस तरह के दोहे सुने हैं .<br /><br />सादर शार्दुलाshardula naugazanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-71990629532405298052013-05-25T16:31:49.075+05:302013-05-25T16:31:49.075+05:30शार्दूला जी
दोहा गाथा एक प्रयास है छंद को केंद्र म...शार्दूला जी<br />दोहा गाथा एक प्रयास है छंद को केंद्र में लाने का. जब समय मिले प्रारंभिक कड़ियाँ देखकर अभिमत देंगी। उनमे काव्य रचना के आधार समझने के प्रयास किया है.<br />एक निवेदन यह कि बांगला के कुछ दोहे देवनागरी लिपि में अर्थ के साथ दे सकें तो इस शारदेय अनुष्ठान की शोभ तथा उपयोगिता वृद्धि होगी।<br />बांगला कविता में छंद हिंदी जैसे ही हैं क्या? यदि अन्य छंद हों जैसे मराठी में अभंग, पंजाबी में माहिया तो कृपया जब समय हो हमें सिखाएं। sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-14071300717269645542013-05-25T16:23:07.964+05:302013-05-25T16:23:07.964+05:30shar_j_n
आदरणीय आचार्य जी,
वाह बहुत बहुत अच्छा!
...shar_j_n<br /><br />आदरणीय आचार्य जी,<br /><br />वाह बहुत बहुत अच्छा!<br /><br />शीश नवाते आपको, ईकविता जन आज <br />ज्ञान वृष्टि दोहावली, पाता मुदित समाज <br /><br />सादर शार्दुला shardula naugazanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-90634101863324846682013-05-24T18:31:54.316+05:302013-05-24T18:31:54.316+05:30jyotsana bin srishti men, soojhta hai path naheen....jyotsana bin srishti men, soojhta hai path naheen. / <br />saday hain prabhu mil gayee hai jyitsana mujhko yaheensanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-39701785701731447732013-05-24T18:26:58.540+05:302013-05-24T18:26:58.540+05:30शुभाशीष पा कुसुम का, सलिल हो गया धन्य.
दोहा अनुपम ...शुभाशीष पा कुसुम का, सलिल हो गया धन्य.<br />दोहा अनुपम छंद है, इस सा छंद न अन्य।।sanjivnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-4623439229606968922013-05-24T18:25:27.719+05:302013-05-24T18:25:27.719+05:30kusum sinha
priy sanjiv jee
...kusum sinha<br />priy sanjiv jee<br /> etne sundar dohe likhna bahut kam logo ke vash me hai padhakar bahut khushi hui<br />badhai bahut bahut badhai bhagwan kare aap sada swasth rahen aur khub likhte rahenkusum sinhanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-25555064981071787782013-05-24T18:24:32.444+05:302013-05-24T18:24:32.444+05:30ज्योत्स्ना शर्मा
सुन्दर भाषा भावमय, पुलकित दोहा आ...ज्योत्स्ना शर्मा <br />सुन्दर भाषा भावमय, पुलकित दोहा आज |<br />मात शारदा सोचतीं, सुत मेरो कविराज......:)) ...बहुत सुन्दर सारगर्भित जानकारी दी आपने मुझे ...आपकी मित्रता ,आपका स्नेह ,आशिष माँ शारदा का उपहार है मेरे लिए !jyotsa sharmanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-42210631155286455832013-05-24T18:04:15.548+05:302013-05-24T18:04:15.548+05:30Guddo Dadi करत-करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान.
रसर...Guddo Dadi करत-करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान.<br />रसरी आवत-जात ते, सिल पर पडत निसान<br />सुंदर क्या आज की पीडी समझ पाएगी साहित्य आधुनिक यंत्रो पर निर्भर है (नेट फेसबुक)guddo dadinoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-35624164838215038602013-05-24T18:02:51.284+05:302013-05-24T18:02:51.284+05:30Shubham Dubey
Bhai
Kha Se Dekh K Likha Mast H Y...Shubham Dubey <br /><br />Bhai <br />Kha Se Dekh K Likha Mast H YrShubham Dubeynoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-51850323591182359082013-05-24T17:58:31.520+05:302013-05-24T17:58:31.520+05:30Laxmanprasad Ladiwala
दोहों का बहुत सुंदर इतिहास...Laxmanprasad Ladiwala <br /><br />दोहों का बहुत सुंदर इतिहास बताया आपने आदरणीय श्री संजीव सलिल जी आपने सही कहा है तत्कालीन राजा महाराज से अधिक सम्मान दरबारी कवी को मिला है, मेरे जयपुर शहर को बसाने वाले महाराजा सवाई जयसिंह जी के दरबारी कवि और विद्वान् कवि बिहारी के लिए कहा गया है - सत्सय्या के दोहरा जो नाविक के तीर, देखन में छोटे लागे घाव करे गंभीर | हार्दिक बधाई और जानकार के लिए आभार स्वीकारेLaxmanprasad Ladiwalanoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-3559218773716098582013-05-24T16:21:42.403+05:302013-05-24T16:21:42.403+05:30Mahipal Tomar via yahoogroups.com
आचार्य संजीव...Mahipal Tomar via yahoogroups.com<br /><br />आचार्य संजीव'सलिल'जी,<br /><br />आपका 'दोहा-गाथा' पुरुषार्थ श्लाघनीय है। शिखर -पुरुष(अपने समकालीनों-तुलसी, सूर, नानक) कबीर को नए अंदाज में बंचवाना नई उर्जा का संचार करता है। समापन दोहे का साक्षात्कार किये हुए लोगो की संख्या भी इस देश में काफी है। <br />सादर, शुभेक्षु,<br />महिपालMahipal Tomarnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-4656894436049879332013-05-24T12:37:29.784+05:302013-05-24T12:37:29.784+05:30deepti gupta via yahoogroups.com
बहुत ज्ञानवर्धक...deepti gupta via yahoogroups.com<br /><br />बहुत ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर संजीव जी !<br /><br />सादर,<br /> दीप्ति Divya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5874853459355966443.post-47867843523011535602013-05-24T11:14:53.936+05:302013-05-24T11:14:53.936+05:30Indira Pratap via yahoogroups.com
बंद किताबों...Indira Pratap via yahoogroups.com<br /> <br /><br /> बंद किताबों में पड़े, बाँट रहे थे ज्ञान|<br /> दोहे के रस-खान हैं,'सलिल'जी अति महान|| मेरे लिखे दोहे में गलतियाँ संजीव भाई आप स्वयं सुधर लें | दोहों सम्बंधित ज्ञान देने के लिए बहुत बहुत साधुवाद | शुभ कामनाओं के साथindira pratapnoreply@blogger.com