विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर
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'चंद्र विजय अभियान'
साझा काव्य संग्रह
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इसरो ने चंद्र-विजय अभियान से विश्व में देश का नाम ऊँचा किया। इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को बधाई देने के लिए विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर व श्वेतवर्णा प्रकाशन दिल्ली के तत्वावधान में देश के कवियों प्रतिनिधि काव्य संकलन प्रकाशित किया जा रहा है। इसरो, चंद्रयान प्रक्षेपण और आरोहण आदि पर केंद्रित लगभग २० पंक्तियों की काव्य रचनाएँ आमंत्रित हैं।
अपनी रचना, चित्र, सूक्ष्म परिचय (जन्म दिनांँक-माह- वर्ष-स्थान, माता-पिता- जीवनसाथी, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित पुस्तकें, डाक पता, मोबाइल नंबर, ईमेल) तथा सहभागिता निधि ३००/- प्रति पृष्ठ व्हाट्सएप क्रमांक ९४२५१ ८३२४४ पर भेजें। संकलन वरिष्ठता क्रमानुसार है, अत: जन्म संबंधी पूरी जानकारी दें। अंतिम तिथि ३०.९.२०२३।
अहिंदी रचना देवनागरी लिपि में हिंदी अर्थ सहित भेजें। आंचलिक भाषा/ बोली की रचनाओं का स्वागत है। हर सहभागी हेतु एक पृष्ठ तथा एक प्रति निर्धारित है। अधिक पृष्ठ हेतु ३०० रु. प्रति पृष्ठ तथा अतिरिक्त प्रति हेतु ३०० रु. प्रति अग्रिम भुगतान करें।संकलन की कुछ प्रतियाँ इसरो को निशुल्क भेजी जाएँगी। पारिश्रमिक देय नहीं है।
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खुश खबरी और चुनौती
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विविध बोलियों और भाषाओं में वैज्ञानिक उपलब्धि पर प्रकाशित हो रहे पहले काव्य संकलन में सहभागी होने का गौरव पाइए।
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रचना, चित्र, सूक्ष्म परिचय (जन्म तिथि-स्थान, माता-पिता-जीवनसाथी, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित पुस्तकें, डाक पता, ईमेल, चलभाष/वाट्स एप) तथा सहयोग निधि ३००/- देनेवाले साथी
(देवनागरी वर्ण क्रम अनुसार)
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विश्ववाणी हिंदी अभियान संस्थान जबलपुर
काव्य संकलन - चंद्रारोहण अभियान
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रचना, चित्र, सूक्ष्म परिचय (जन्म तिथि-स्थान, माता-पिता-जीवनसाथी, शिक्षा, संप्रति, प्रकाशित पुस्तकें, डाक पता, ईमेल, चलभाष/वाट्स एप) तथा सहयोग निधि ३००/- देनेवाले साथी
(देवनागरी वर्ण क्रम अनुसार)
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- अखिलेश चंद्र गौड़, कासगंज ८६३०६२९८४७/ ३०.१०.५६
अमरेंद्र नारायण जबलपुर ९४२५८०७२००/२२.११.४५
- अरविंद श्रीवास्तव 'असीम', दतिया, ९४२५७२६९०७ / २९-६-१९५९
- अवधेश सक्सेना शिवपुरी ९८२७३२९१०२/२९.६.५९
- अविनाश ब्यौहार जबलपुर ९८२६७९५३७२/२८.१०.६६
- आशा जैन, सिहोरा, ९७५४९ ७९८९९ / २४.९.
- उदयभानु तिवारी 'मधुकर', जबलपुर / १८.८.४६ *
- उषा वर्मा 'वेदना' जयपुर ९९२८०३०३७९
- कनकलता जैन गुवाहाटी, ७४७२९२०७३०
- कमलेश शुक्ला, दमोह ९८२६४ ८०५६४ / ९-८-६२
किरण सिंह 'शिल्पी', शहडोल ८८२७२११०२३/१९.८.६५ बघेली
- गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल' कोटा ७७२८८२४८१७/ १८.६.५५
- चारु श्रोत्रिय, जावरा रतलाम ९८२७३४२०६७ /४.२.६७
- चेतना अग्रवाल,अहमदाबाद ९०३३०५९०१४/२७.११.७१
- चोवा राम वर्मा 'बादल', बलौदा बाजार, भाटापारा ९९२६१९५७४७/ २१.५.६१
- जयप्रकाश श्रीवास्तव, जबलपुर ७८६९२९३९२५/ ९.५.५१
- ज्योति जैन, कोलकाता ८१६७८ ८४४२७ / २८.१.७४
- तनुजा श्रीवास्तव, रायगढ़ ९१०९६०५९६४/२३.८.८६
- तृप्ति मिश्रा, हैदराबाद ९४४१२४२४१२ / ७.७.७०
- नवनीता चौरसिया, जावरा रतलाम ९४०६६ ३६१३१ /
- नारायण श्रीवास्तव, करेली, नरसिंहपुर, ९४२५८ १५९३३ / १-८-१९५२
- नीता नय्यर 'निष्ठा', रानीपुर हरिद्वार ९८९७२ ०६५४५ /
- नीता शेखर 'विषिका', रांची
- नीलम कुलश्रेष्ठ, गुना ९४०७२२८३१४ / ३.८.७१
- नूतन गर्ग, दिल्ली ८७००६ ९४५३५,
- पल्लवी गुप्ता, ९४३४२६८४२५
- पूनम चौहान, बिजनौर ९२५८७ ५६२२२/२५.४.६७
- प्रियदर्शिनी पुष्पा, धनबाद ७९०३६ ४४८५७ / ५.९.७९
- बृंदावन राय 'सरल', सागर ७८६९२ १८५२५
- बसंत शर्मा, बिलासपुर ९४७९३५६७०३/५.३.६६
- बाबा कल्पनेश ८७६५१९४७७३/
- मदन श्रीवास्तव जबलपुर ९२२९४४३६०१०/३.११.५१
- मधु प्रधान, मुंबई ९९६९२ १२३४४,
- महेंद्र नाथ तिवारी 'अलंकार' वाराणसी ९४५४७ २९८५३ /१.६.५६
- मीतू मिश्रा, हरदोई ७८००३९१९६३/
- मीना भट्ट, जबलपुर ७९७४१ ६०२६८ / ३०.४.५३
- मीना श्रीवास्तव, ग्वालियर ७०४९०३५५५५/
- मीनाक्षी गंगवार, लखनऊ ९४५०४ ६८९४१
- मीनू पाण्डेय 'नयन', भोपाल ७९८७१४१०७३ / १९.२.७३
- मुकुल तिवारी, जबलपुर ९१३११ ९४५३५/१.७.
- रजनी शर्मा रायपुर ९३०१८३६८११
- राजलक्ष्मी शिवहरे, जबलपुर ९९२६८७०१०३/
- राधेश्याम साहू 'शाम', जमनी पाली, कोरबा ८३१९७ ४५८९८, ३.६.७६
- रेखा श्रीवास्तव, अमेठी ९४५०७ ७४२०२ / ११.९.६०
- वसुधा वर्मा, ठाणे ९८३३२३२३९६ /५.९.५७
- विजयलक्ष्मी 'विभा', प्रयाग ९४५११८१४२३/२५.८.४६
- विनोद जैन 'वाग्वर' सागवाड़ा ९६४९९ ७८९८१ / १७.९.१९६८
- विपिन श्रीवास्तव, दिल्ली ९८२६२ ७६३६४/२.९.८० बुंदेली
- विष्णु शास्त्री 'सरल' चंपावत उत्तराखंड ९४११३४७९३४
- वीणा कुमारी नंदिनी,
- वैष्णो खत्री 'वेदिका' जबलपुर ७९९९६१८६०/ १९.३५८
- शन्नो अग्रवाल, लंदन ४४७८७१११३९९४
- शशि त्यागी, अमरोहा ९०४५१ ७२४०३/ २८.३.५६
- शालिनी त्रिपाठी 'शालू', फरीदपुर ७९८५१ १७८७८ / १६.९.९५
- शिप्रा मिश्र छपरा ९४७२५०९०५६/२६.६.६९
- शिप्रा सेन, जबलपुर ७७४८९ ८०५३३/१४.७.६१
- शिव नारायण जौहरी, भोपाल ९९८१५ ०७०१२, ३.१.२६
- संगीता नाथ, धनबाद ९४३११ १६८९८ /३.९.६३
- संगीता भारद्वाज, भोपाल ८८८९५ ५८८८५ / २०.८.
- संजीव वर्मा 'सलिल' - जबलपुर
- संतोष नेमा, जबलपुर ९३००१ ०१७९९/१५.७.६१
- सरला वर्मा, भोपाल ९७७०६७७४५३ / २.६.५७
- सरोज गुप्ता, सागर ९४२५६ ९३५७० / २०.७.६३ बुंदेली
- सिम्मी नाथ, रांची ९९३९६७३००४
- सुनीता परसाई, हैदराबाद ९६१९४ ५५६११/२०.३.५६
- सुभाष सिंह, कटनी ९९८१७ ८११९५, २५.६.६५
- सुरेंद्र सिंह पवार, जबलपुर ९३००१०४२९६/२५.६.५७
- सुषमा वीरेंद्र खरे, सिहोरा ९४२५१५४३६१/ २३.१२.६५
- सुषमा सिंह करचुरी, ८८८९२५४६९५/२.१.६९
- हरि श्रीवास्तव 'अवधी हरि', लखनऊ ९४५०४८९७८९/ १७.७.६५
- हरि सहाय पाण्डेय 'हरि', जबलपुर ९७५२४१३०९६, १०.६.६६
*
- अपराजिता रंजना, पटना
९१५५० २४६६१
- ए. पी. सिंह, दिल्ली
- दिनेश दत्त शर्मा 'वत्स', गाजियाबाद ९३११५०२७६९ / १५.८.३९
- भावना पुरोहित
- मंजु शुक्ल, लखनऊ ९४१५१०९५९४ / ६.९.५०
- योगिता चौरसिया, अंजनिया मण्डला
- समराज चौहान, कार्बी आंगलांग असम ६००००५९२८२
..... निरंतर
* शिवनारायण जौहरी 'विमल'*
आत्मज- स्व. हरनारायण जौहरी ।
शिक्षा - बी.एस-सी., बी.ए., एल-एल.एम., साहित्य रत्न,
विशेष- कारावास प्राप्त स्वतंत्रता सत्याग्रही।
संप्रति- सेवानिवृत प्रमुख विधि सचिव, न्यायाधीश।
प्रकाशित कृति - रूपा खंड काव्य, काव्य संग्रह: अंतर्मन के साथ, जिजीविषा, त्रिपथगा, क्षितिज से, प्रपात।
संपर्क- २४/ डी के देवस्थली फेज टू, बाबडिया कला रोड,
दाना पानी रेस्टोरेंट के पास, भोपाल।
चलभाष- ९९८१५ ०७०१२ ।
*
चंदा मामा
धरती माँ अपने लाल को
आधुनिक यान में बैठाकर
ले आई चाँद मामा के घर
जिसको पकड़ने के लिए
जब गोद में था,
मचलता रहता था।
जब मैं पानी में हाथ डालकर
चाँद मामा को पकड़ना चाहता था
पानी बुलबुले होकर मुझे
चंदा की पकड़ से
मिलने नहीं देते थे,
माँ की सभी तरकीबे
असफल हो जाती।
बालक को दिखाया
ये तुम्हारा चाँद मामा है
उसने आश्चर्य से देखा
न वहाँ चाँदनी थी, न कोई घर
न जल था, न जीवन
न पेड़-पौधे, न घास
न फल, न फूल, न रंगीनियाँ।
केवल पत्थर थे, धूल थी,
पहाड़ थे, गढ़े थे
सोचने लगा मैं, न सुगंध है
न कोई हरित आभा,
हर चीज से विद्रोह
न प्यार, न आश्वासन, न अपनापन
मिट्टी से खेले, क्या करें
जब पानी ही नहीं तो
किस उम्मीद पर
जीवन के जो बचे घंटे है
उन्हे कैसे काटें थोड़े समय में
इस तरह यही मर जाने से
तो अच्छा है
घर लौट चले अब।
माँ! अब मुझे चंदा नहीं पकड़ना
ले चलो वापस वहीं
जहाँ से तुम ले आई हो
इस चंद्रमा के पास।
*
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* कृष्णकांत चतुर्वेदी *
जन्म- १९ दिसंबर १९३७, जबलपुर मध्य प्रदेश।
आत्मज- स्व. ।
जीवनसंगिनी- डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी।
शिक्षा -
संप्रति- ।
प्रकाशित कृति - ।
संपर्क-
जबलपुर ।
चलभाष- ।
*
इसरो अष्टकम्
जयतु इसरोगाथा
(संस्कृत भाषा)
*
इसरो तु संस्था$स्माकं राष्ट्रस्य गौरवप्रदा।
अंतरिक्षविज्ञाने निरता शोधकर्मणि।१।
भारतसर्वकारेण स्थापनास्य कृता शुभा।
विक्रमसाराभाई वै प्रधानत्वे नियोजितः।२।
अन्तरिक्षविज्ञानतन्त्रभागे व्यवस्थितः।
बंगलूराख्यनगरे मुख्यकेन्द्रास्य वर्तते।३।
कृतं पूर्वाननेनैव बहवः कर्मसंग्रहाः।
आसन्सर्वे विकासाय मंगलायाभिवृद्धये।४।
नैके यन्त्रविमानाश्च प्रक्षिप्ताः गगनाङ्गणे।
सूचनातन्त्रलाभायसम्पर्कविधिवृद्धये।५।
सर्वत्रोपयोगित्वादन्यदेशादयो$पि च ।
सर्वदा सविनयेन याचन्ते $स्मत्सहायताम्।६।
योजना आर्यभट्टेति पूर्वमेव प्रवर्तिता।
आदित्य एलवनएकस्प्रेषितं तन्मण्डले।७।
विज्ञः सोमनाथेति विजयी प्रमुखो$धुना।
जयतु जयतु शश्वत् सुप्रतिष्ठां भजस्व।८।
इति इसरो अष्टकं सम्पूर्णम्
***
चंदजान जात्रा
(पालि भाषा)
*
वंदनं पठमं बुद्धं दुतिअं धम्मसंम्पदं।
तितियं संघसंथानं नमो बुद्धस्स सासनं।१।
चंदजानं तु उड्डत्ति गअने तिब्ब गइना।
मेघंप्पि पिट्ठतो दिट्ठं अनुकअणं कत्तुं गइं।२।
झंझाबिट्ठिप्पहाएण मग्गं तस्स रुद्धिअं।
तथापिअणवरुद्धं तस्स जात्रा पवत्तते।३।
तस्मिंस्तु एकैअं आर्बिटरं रोवरं लैंडरं
तितिअं चंदजानस्स् पक्खेपस्स काअणं किं।
चंदमंडलपूण्णस्स कइतोत्त्थि परिक्कमा।४।
पूब्बतोपि मंगलस्स पक्खेपस्स हि काअणं।
कक्खांं.कक्खांअतिक्कम्म निभ्भअं वज्जांग इव।५।
विग्गाणिऐ सावहिऐ जानस्स निम्मिती जाआ।
पतिभासामत्थजोएण सिट्ठिर्णव सुसृज्जिआ।६।
जदा अंतिमा कक्खां जानं तत्तुंसमुद्दतं।
तदा भारतवर्सस्स जनाःसव्वे सुचिंतिआ।७।
अंतओ संकअंं निबुत्तं जानस्स जात्राप्पि पुण्णा।
अउना तिट्ठइ जानं चंदस्स कोअले अंगे।८।
चंद जान जात्रा अट्टकं संपुण्णं
***
महत्त्व
(प्राकृत भाषा)
*
जयदु महाबीरोसुट्ठुजस्स पवत्ति
जयदु णम्मदा पुण्णतोया णदीसु।
जयदु चंदमा लख्खभूओ णराणां.
जयदु भारदिज्जौ जिदं चंदमा जेण अज्ज।१।
ण्णादिजणसणिद्धद्थि।भवंदि णिराबाधं द।
जयदु उत्साह हेतुअ गव्वभूओ णराणां।२।
चंदमा मज्झगओ जानं देण लक्खिदा सा धआ।
अम्हाणम्पिअ साअस्सं आसीअ हइअम्बआ।२।
भारदस्स धुजं भब्बं तिलंगं थापिअं तआ।
जाणस्स पअचिंहाणं तद्द सम्मअ लक्खिदंः।३।
एकब्ब सुअ संथाणं गज्जिदं भूइ मंडए।
भारथेण जिदं सब्बं जैदु जैदु जैदु मुआ।४।
सब्बे वैग्गाणिआ तद्द आल्लाहेण विप्फूइआ।
अणंदरं दु दुज्जणा मूईभूओ पितित्ठरे।५।
अम्हाणं नु जणा सच्चं उच्छाह रसमज्जिअं।
गाअंति नत्तंति सब्बे मंगअद्धुणि संजुदा।६।
अण्णे द्द्यु छ्रुदं सुक्खं अण्णदेइ घटाघटं।
लैण्डअं उड्डअं सुअं उद्दरद्छान्तछन्दणि।७।
आस्सा जाग्आ जाआ माणुसं तद्द गमिसस्सि।
एखा विषइणी वात्ता सिद्धंम्पि भइस्ससि।८।
इति प्राकृत अष्टकं सम्पूर्णम्।
***
यश अर्चन
(ब्रज भाषा)
भरी जयकार विश्व मंडल में भारत की बड़ौ जाने काम कियो कहा कह्यो जाय है,
सारे देश जग के जतन करि हार गये सीता के स्वयम्बर सी मची हाय हाय है।
चन्द्रमा की भूमि में गड़ी है दृष्टि लोभिन की चाहैं सबै भूमि बस हमे मिल जाय है,
तासें दौरि दौरि सब भाजि रहे वाही ओर चंद की कृपा ते बात मेरी बन जाय है।१।
जानें सभी सन्त वृन्द ब्रह्म चित्त सों है जन्म, तातै कान्त सुन्दर मनोज्ञ छबि धारे है,
जाय देखि कविता में खूब तेज धार चढ़ी, उपमा के बन्ध खोजि खोजि यहाँ डारे हैं।
अंतरिक्ष ज्ञानी देखें जाय भिन्न भावन ते , ग्रह एक बड़्यौ चन्द शोध के सहारे हैं;
देव चन्द्र बहुत पुराने हैं हमारे मित्र, प्राणन के प्राण जैसे सबके दुलारे हैं।२।
चारि अर्थ, विक्रम, प्रचंड वेग शक्तिन कौ, बल तेज भारत कौ सहज सुभाव है;
लक्ष भेदिबे की कला साहस प्रताप गुण, आदि महावीरन मे भरे बड़े भाव हैं।
निश्चय कियौ है चन्द्र मंडल में जावेंगे, जानेंगे वंहा पै काकौ कैसै का प्रभाव है;
हमारौ शुभ गौरव तिरंगा ताहि आगे करि प्रकट करेंगे बाको शुद्ध अनुभाव है।३।
***
मित्र मेरे चन्द्र
(हिंदी भाषा)
*
मित्र मेरे चन्द्र! तुम हो दूर इतने,
बात भी तो हो नहीं सकती वहाँ से।
चाहता हूँ, भुजा भर मैं भेंट कर लूँ,
किन्तु यह भी तो नहीं सम्भव यहाँ से।१।
हृदय गद् गद् प्राण उद्वेलित-प्रफुल्लित,
विगत सदियों की बड़ी घटना यही है।
विज्ञान विद्या पुंज, इनके सामने
विश्व बोना हुआ अब तो यह सही है।२।
खो गई थी विश्वव्यापी जो प्रतिष्ठा
दीप्त, वह स्वर्णाक्षरों में भरत जन में।
सोमनाथी शक्ति जाग्रत राष्ट्र-वैभव
ध्वनित है ब्रह्मांड के उज्ज्वल गगन में ।३।
कालिमा का अंश तुमको दिया विधि ने
हो रही चर्चा यही संसार में।
किन्तु हमने प्रणति पूर्वक मान मय
गौरव तिरंगा दिया प्रिय उपहार में।४।
शर-धनुष श्रीराम वंंशी कृष्ण की
बुद्ध शंकर वसन गैरिक पुण्यमय।
जो सभी था प्राप्त इस पावन धरा पर
दिया सविनय प्रणय विह्वल नेह तन्मय।।५।।
कर रहे वन्दन सदा से हम सभी
शरद रजनी के सुकोमल ज्योतिधर!
पूर्ववतस्मरणकरना आत्म जन का
होम परस्पर अनवरत हम प्रीति निर्भर।।६।।
***
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* दिनेश दत्त शर्मा 'वत्स' *
जन्म - १५ अगस्त १९३९ गाज़ियाबाद।
आत्मज - स्व. विद्यावती शर्मा-स्व. जगत प्रकाश शर्मा ।
शिक्षा - विग्यान स्नातक, रासायनिक अभियंत्री स्नातक।
संप्रति - औद्योगिक परामर्शदाता , सर्वेक्षक और हानि निर्धारक बीमा निगम।
संपर्क - ५६ छत्ता मोहल्ला, देहली गेट, गाज़ियाबाद २०१००१ ।
चलभाष - ९३११५ ०२७६९ ।
*
चंद्र विजय प्रतिक्रिया
(बतर्ज वॉयसकोप)
हिंद, सारा भाईयों का विक्रम तो देखिए।
चातुर्वर्षीय व्रत का पारण भी देखिए।।
विज्ञान कौशल का प्रदर्शन तो देखिए।
चंद्रतल पर यान का अवतरण भी देखिए।।
विजय के क्षणों का आनंद तो देखिए।
सोमनाथ के गणों का नर्तन भी देखिए।
चंद्र तल पर इसरो का लोगो तो देखिए।
चंद्र-जय पर राष्ट्र का उन्नत सिर देखिए।
विदेशी विधर्मियों का रोदन तो देखिए।
सनातन सभ्यता का, शोभन भी देखिए।।
*
क्या कहा?
बहुत सुंदर दीखती है,
पृथ्वी चंद्र तल से।
चंद्रमा भी तो बहुत सुंदर
दीखता है धरा तल से।
निकट जाकर देखते हैं
तो भरा मुख चेचकी विवरों से।
चंद्र तल पर पहुँच कर
मत भूलना तुम ,
है भरा मुख , इस धरा का
दैन्य दुर्बलता अभावों से।
मत भूलना हो प्रभावित ,
अल्प गुरुत्वाकर्षण जनित
चंद्र तल भारहीनता से।
इस धरा पर भार है
गगन की ऊँचाई में
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन जनित
प्रदूषित वायु से।
*
-----------------------------------------------------------
*
चाँद हमारी बाहों में
*
चाँद आ गया आज हमारी बाँहों में,
खौफ छा गया दुनिया की निगाहों में,
यह गरीब देश कैसे जा पहुँचा चाँद पर,
जो साधन संपन्न थे, हुए होड़ से बाहर।
देने को तो दी हर देश ने हमको बधाई,
पर बात यह उनके समझ में जरा न आई,
होता जो कार्य सहमति से एकजुट होकर,
'मैं' से हटकर 'हम' की भावना को लेकर।
हम भारतीय करते हर कार्य जोश से,
आलस्य, ईर्ष्या नहीं हमारे शब्दकोश में,
यही लगन और दिल से होता है जो काज,
उसी से हम पहुँचे दोस्तों! चाँद पर आज।
दुनिया करती है अब हम पर नाज,
वैज्ञानिकों ने पहनाया भारत को ताज।
अब्दुल कलाम का स्वप्न हुआ साकार,
बीस वर्षों से था इस क्षण का उन्हें इंतजार।
चंद्रयान-३ ने यह कमाल कर दिखलाया,
चाँद के करीब अपनी धरती को वह लाया,
विक्रम ने किया कमाल, प्रज्ञान है चाँद पर,
आदित्य भी लगाएगा तिलक, सूर्य के भाल पर।
हो रहा गर्व, चाँद पर तिरंगा लहराया,
शान से कहो, चाँद को हमने ही पाया,
यह ऐतिहासिक क्षण कभी न भूल पाएँगे,
अब शुक्र, शनि पर भी विजय हम पाएँगे।
दुनिया ने मानी आज भारत की ताकत,
जय हो, जय हो, बधाई हो भारत।।
*
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* अमरेन्द्र नारायण *
आत्मज- स्व.तारा देवी- स्व.श्री विनोद नारायण।
जीवनसंगिनी- श्रीमती आशा नारायण।
शिक्षा- बी.एस-सी. इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग।
संप्रति- सेवा निवृत्त भारतीय दूर संचार सेवा और एशिया फैसिफिक टेलीकम्युनिटी।
प्रकाशित कृतियाँ- उपन्यास-संघर्ष,एकता और शक्ति, Unity and Strength,The Smile of Jasmine, Fragrance Beyond Borders काव्य- श्री हनुमत् श्रद्धा सुमन, सिर्फ एक लालटेन जलती है, अनुभूति,थोड़ी बारिश दो;तुम्हारा भी,मेरा भी; उत्साह,तुम्हारा अभिनंदन।
जीवन चरित:पावन चरित-डाॅ.राजेन्द्र प्रसाद
संपर्क- शुभा आशीर्वाद , १०५५ होशियार सिंह मार्ग, साऊथ सिविल लाइन्स,जबलपुर मध्य प्रदेश ४८२००१ ।
चलभाष- ९४२५८०७२००, ईमेल,amarnar@gmail,com .
*
उड़न खटोलवा
(भोजपुरी)
*
हमनीं के भेजले बानीं उड़न खटोलवा।
चम चम चमकेला खटोला अनमोलवा।।
देसवा के बेटा बेटी देस में बनवले।
भूख पिआस निंदिया भुलाईके खटोलवा।।
प्रेम के संदेसा लेके भारत के लोगवा के।
सज के उड़ल मनमोहना खटोलवा।।
अँखियाँ टिकवले रहले देसवा के लोगवा।
देखले उड़ान जब लिहलस खटोलवा।।
जिअरा जुड़वलस आ मुखड़ा हंसवलस।
मान बढ़वलस दुलरूआ खटोलवा।।
आन-बान से उड़ल, अरमान से उड़ल।
स्वाभिमान से उड़ल प्यारा प्यारा ई खटोलवा।।
पिया के संदेसा चंदा तूं ही पहुंचावेलऽ।
प्यार के संदेसा पहुंचावता खटोलवा।।
ओनहूं से तनी मीठ बतिया पठावऽ।
हमनीं के आगे भी त भेजब खटोलवा।।
तोहरे के ताकेला नू धरती के लोगवा।
हाल बताई जाके उड़न खटोलवा।।
आस टिकवले निहारीं असमनवां के।
तुहूं तनी भेजऽ आपन प्यार से खटोलवा।।
आदमी के बाटे इहां झुलसल हियरा।
भेजऽ तूं संदेसा तनी मीठा मीठा बोलवा।।
जलन अगिन तूं बुझादऽ हर मनवां से।
चैन तनी पावे इहां आदमी के चोलवा।।
उड़न खटोला के दुलार से तू रखिहऽ।
हमनीं के प्रेम निसानी बा खटोलवा।।
नजर गुजर से बचइहऽ काली मईया।
सजल धजल बा सलोना बा खटोलवा।।
*
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