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शनिवार, 10 अप्रैल 2021

बंकिम चंद्र

बंकिम चंद्र के साहित्य में विविधता झलकती है
गुड्डो दादी 
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'वंदे मातरम' के रचयिता बांग्ला लेखक बंकिमचंद्र चटर्जी को न केवल देशभक्ति का अलख जगाने वाले उपन्यास 'आनंदमठ' के लेखक के रूप में जाना जाता है बल्कि उन्हें कई रोमांटिक उपन्यासों की रचना के लिए भी ख्याति प्राप्त है। बंकिमचंद्र चटर्जी की पहचान बांग्ला कवि उपन्यासकार लेखक और पत्रकार के रूप में है। चटर्जी का जन्म 26 जून 1838 को एक रूढ़िवादी परिवार में हुआ था जबकि आठ अप्रैल 1894 को उनका निधन हो गया था।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक मोहम्मद काजिम ने बताया कि बंकिमचंद्र को बंगाल के प्रारंभिक उपन्यासकार के रूप में ख्याति प्राप्त है। उनकी रचनाओं में समाज की विविधता झलकती है। इस बांग्ला रचनाकार के बारे में कहा जाता है कि माइकल मधुसूदन ने जो योगदान बांग्ला काव्य में दिया वैसा ही योगदान चटर्जी ने बांग्ला फिक्शन के लिए दिया है। प्रो. काजिम ने बताया कि चटर्जी एक बेहतर कथाकार और रोमानी रचनाओं के सृजक भी थे। वह रास्ता बनाने वालों में से थे। इससे पहले किसी भी बांग्ला लेखक ने उनकी तरह ख्याति अर्जित नहीं की थी।
बंकिमचंद्र के उपन्यासों का भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। उनकी प्रथम प्रकाशित कथा-कृति राजमोहन्स वाइफ थी। इसकी रचना अंग्रेजी में की गई थी। बांग्ला में प्रकाशित उनकी प्रथम रचना दुर्गेश नंदिनी (1865) थी जो एक रूमानी रचना है। उनकी अगली रचना का नाम कपालकुंडला (1866) है। इसे उनकी सबसे अधिक रूमानी रचनाओं में से एक माना जाता है। उन्होंने 1872 में मासिक पत्रिका बंगदर्शन का भी प्रकाशन किया। अपनी इस पत्रिका में उन्होंने विषवृक्ष (1873) उपन्यास का क्रमिक रूप से प्रकाशन किया।
कृष्णकंटक विल में चटर्जी ने कुछ कल्पना का इस्तेमाल किया है और इसे पाश्चात्य उपन्यास के करीब माना जाता है। चटर्जी की एकमात्र रचना जिसे ऐतिहासिक फिक्शन माना जा सकता है वह राजसिम्हा (1881) है। आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। बंकिमचंद्र की इस रचना ने देश को वंदे मातरम गीत दिया जो आगे चलकर राष्ट्रगीत बना। चटर्जी का आखिरी उपन्यास सीताराम (1886) है। इसमें मुस्लिम सत्ता के प्रति एक हिंदू शासक का विरोध दर्शाया गया है।

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